राष्ट्रीय हरित अधिकरण, प्रमुख उद्देश्य, संरचना

 राष्ट्रीय हरित अधिकरण, प्रमुख उद्देश्य, संरचना


राष्ट्रीय हरित अधिकरण-
पर्यावरण से संबंधित मामलों के प्रभावी और त्वरित निपटान के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम,2010 के द्वारा 18 अक्टूबर 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना की गई। इस प्रकार एक सांविधिक निकाय है,संवैधानिक नहीं। इसे सिविल कोर्ट की शक्तियां प्रदान की गई है।यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के आधार पर कार्य करता है।
भारत ,न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के बाद पर्यावरण से जुड़े मामलों के लिए एक विशेष अधिकरण बनाने वाला तीसरा देश है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण को बनाने की प्रेरणा संविधान के अनुच्छेद 21 से मिली है क्योंकि एक स्वस्थ एवं गरिमामय जीवन जीने के लिए स्वस्थ वातावरण का होना अति आवश्यक है।


प्रमुख उद्देश्य-
1. पर्यावरण, वन एवं वन्य जीव संरक्षण से जुड़े मामलों का त्वरित निपटान करना।
2. पर्यावरण से संबंधित कानूनी अधिकारों के प्रवर्तन एवं व्यक्तियों एवं संपत्ति के नुकसान के लिए सहायता एवं क्षतिपूर्ति दिलवाना।
3. पर्यावरण से जुड़े मामले जो उच्च न्यायालय में चल रहे हैं, उनके बोझ को कम करना।
4. पर्यावरण संबंधी नियमों को प्रभावी तरीके से लागू करवाना।
5. समाज में पर्यावरण के प्रति जागरूकता को बढ़ाना।

संरचना-
1. राष्ट्रीय हरित अधिकरण में एक पूर्णकालिक अध्यक्ष होता है जो उच्चतम न्यायालय का सेवानिवृत्त न्यायाधीश होता है।
2. सदस्यों में इसमें न्यायिक(न्यूनतम 10 और अधिकतम 20) तथा विशेषज्ञ सदस्य(न्यूनतम 10 और अधिकतम 20) होते हैं।इस प्रकार कुल अधिकतम सदस्य 40 हो सकते हैं।
4. न्यायिक सदस्य उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश होते हैं तथा विशेषज्ञ सदस्य पर्यावरण मामलों के विशेषज्ञ होते हैं।
5. अधिकरण में निर्णय बहुमत के आधार पर लिये जाते है।
6. अधिकरण की मुख्य बेंच नई दिल्ली में तथा क्षेत्रीय बेंचें भोपाल, पुणे,कोलकाता और चेन्नई में हैं।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण में निम्नलिखित पर्यावरण अधिनियमों से जुड़े मामलों की सुनवाई होती है-
1. जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974
2. जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) उपकर अधिनियम, 1977
3. वन संरक्षण अधिनियम, 1980
4. वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981
5. पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
6. सार्वजनिक देयता बीमा अधिनियम,1991
7. जैव-विविधता अधिनियम, 2002

यह अधिकरण 2 सिद्धांतों को अत्यधिक महत्व देता है-
1.Polluter pays- जिसका तात्पर्य है जिस संस्था या व्यक्ति ने प्रदूषण फैलाया है वही उसकी क्षतिपूर्ति या भुगतान करेगा।
2. Sustainable Development- ऐसा विकास जिसमें पर्यावरण के नियमों का पालन किया जाता है जिससे वर्तमान के साथ साथ आगेेेेेेेे आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहे।
महत्वपूर्ण निर्णय-
1.पास्को कंपनी द्वारा ओडिशा में लगाए जा रहे इस्पात संयंत्र पर रोक लगाई क्योंकि इससे स्थानीय समुदाय एवं वन क्षेत्र को काफी नुकसान पहुंचने की संभावना थी।
2. वर्ष 2013 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण अलकनंदा ने हाइड्रो पावर लिमिटेड को यह निर्देश दिया कि वह सभी याचिकाकर्ताओं को क्षतिपूर्ति दे।
3. वर्ष 2017 में दिल्ली में यमुना के किनारे पर्यावरण के नियमों का उल्लंघन कर रविशंकर ने आर्ट ऑफ लिविंग फेस्टिवल आयोजित किया जिस पर अधिकरण ने 5 करोड़ का जुर्माना लगाया।
4. केरल में 10 वर्ष से अधिक पुराने डीजल वाहनों पर रोक लगाना इसी प्रकार का एक निर्णय दिल्ली के लिए भी दिया गया।
5. छत्तीसगढ़ तथा उड़ीसा में कोल ब्लॉकों के क्लीयरेंस को निरस्त करना ताकि वहां पर्यावरण संरक्षित रहे तथा लोगों का विस्थापन न हो।



अन्य महत्वपूर्ण तथ्य:-
1.जस्टिस लोकेश्वर सिंह पंटा इस अधिकरण के प्रथम अध्यक्ष थे उसके बाद जस्टिस स्वतंत्र कुमार दूसरे अध्यक्ष बने तथा वर्तमान में जस्टिस आदर्श कुमार गोयल इसके अध्यक्ष हैं।
2. अधिकरण के लिए यह अनिवार्य है कि उसके समक्ष लाए गए मामले का निर्णय 6 महीने के भीतर कर दिया जाए।