अपशिष्ट एवं उसका निस्तारण

 अपशिष्ट एवं उसका निस्तारण

मनुष्य एवं अन्य जीवों के दैनिक क्रिया-कलापों के फलस्वरूप निकलने वाले अनुपयोगी पदार्थ, अपशिष्ट पदार्थ कहलाते हैं। इस प्रकार अपशिष्ट वे पदार्थ एवं वस्तु होते हैं जिनकी हमें आवश्यकता नहीं होती तथा जिनको हम फेंक देते हैं। साधारण बोल-चाल की भाषा में हम इसे कचरा कहते हैं। घर, आॅफिस, कारखानों, अस्पतालों, यातायात के साधनों, खेत-खलिहानों, परमाणु केन्द्रों से तरह-तरह के अपशिष्ट पदार्थ निकलते रहते हैं। ये पदार्थ ठोस, द्रव और गैस तीनों रूपों में हो सकते हैं। इन अपशिष्ट पदार्थों को प्रायः भूमि, जल स्रोतों अथवा वायु में विसर्जित कर दिया जाता है जिससे हमारा पर्यावरण दूषित होता है।
कचरे के प्रकार-विभिन्न स्थानों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों को हम तीन भागों में बाँट सकते हैं-





ठोस अपशिष्ट -सब्जी एवं फलों के छिलके, टूटे-फूटे बर्तन, काँच, प्लास्टिक एवं लोहे के अनुपयोगी सामान, घर एवं कारखानों से निकली राख, खेत-खालिहान से निकलने वाले विभिन्न फसलों के डंठल एवं भूसी आदि ठोस अपशिष्ट के उदाहरण हैं। ठोस अपशिष्ट दो प्रकार के होते हैं। एक वे जो सड़-गल जाते हैं जैसे-फलों एवं सब्जियों के छिलके, खराब भोजन, मनुष्य एवं जन्तुओं के मल। इस तरह के कचरे को जैविक कचरा कहते हैं। दूसरे प्रकार के अपशिष्ट वे पदार्थ हैं जो स्वयं नष्ट नहीं होते और पर्यावरण में किसी न किसी रूप में बने रहते हैं। जैसे-कारखानों से निकला रासायनिक कचरा, पाॅलीथीन, प्लास्टिक, धातु के टुकड़े आदि। सड़ने-गलने वाले तथा न गलने वाले कचरे को गीले एवं सूखे कचरे के रूप में भी बाँटा जा सकता है। साग-सब्जियों एवं फलों का छिलका, जीवों का मल-मूत्र गीले कचरे के कुछ सामान्य उदाहरण है। काँच, सिरैमिक प्लास्टिक एवं धातु के टुकड़े, पाॅलीथीन आदि सूखे कचरे के उदाहरण हैं।

द्रव अपशिष्ट-नालियों और सीवर का गंदा पानी और उर्वरक, चमड़ा शोधन, विद्युत उत्पादन केन्द्रों तथा उद्योगों से निकलने वाला गंदा और विषैला जल द्रव अपशिष्ट के उदाहरण हैं।


गैसीय अपशिष्ट- लकड़ी एवं कोयले के जलने से निकलने वाला धुँआ, कारखानों की चिमनियों से निकलने वाला धुँआ, परिवहन के साधनों से निकलने वाला धुँआ, कूड़ा-करकट एवं मरे हुए जीवों के सड़ने से निकली गैसों की दुर्गन्ध आदि गैसीय अपशिष्ट है। इसी प्रकार चूल्हे, अँगीठी, सिगरेट, बीड़ी आदि से भी धुँआ निकलता है। धुँए में काॅर्बन के आॅक्साइड के अतिरिक्त कुछ हानिकारक गैसें व ठोस कणीय पदार्थ पाए जाते हैं। यह धुँआ गैसीय अपशिष्ट का मुख्य उदाहरण है।

अपशिष्ट पदार्थों के स्रोत-अपशिष्ट पदार्थों के स्रोतों को निम्नलिखित वर्गों में बाँट सकते हैं-

•    घर एवं आॅफिस से निकलने वाला कचरा।

•    कृषि, चिकित्सा एवं औद्योगिक क्षेत्रों से निकलने वाला कचरा।

•    प्राकृतिक घटनाओं एवं युद्ध से निकलने वाला कचरा।

    घर एवं आफिस से निकलने वाले कचरे के अन्तर्गत रसोई घर का कचरा जैसे-फल एवं सब्जियों के छिलके, खराब हुआ भोजन, घरेलू कार्यों जैसे नहाने, कपड़ा धोने से निकलने वाला गंदा जल, शौंचालय का मल-मूत्र, पालतू पशुओं का मल-मूत्र, पाॅलीथीन, काँच एवं प्लास्टिक के टूटे सामान, पुराने समाचार पत्र एवं मैग्जीन, पुरानी फाइलें, खराब दवाएं, बेकार हो चुके उपकरण, फर्नीचर, वाहन आदि आते हैं। इसी तरह का कचरा कार्यालयों से भी निकलता है।     

ई-कचरा-घर और आफिस से ई-कचरा अर्थात इलेक्ट्रनिक कचरा भी निकलता है जिसके अन्तर्गत खराब कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, सी0डी0, बैटरी व अन्य इलेक्ट्रनिक उपकरण जैसे- टी0वी, फ्रिज, वाॅशिंग मशीन, ए0सी0 आदि आते हैं।     

    औद्योगिक क्षेत्रों से निकलने वाले कचरे के अन्तर्गत सभी तरह के फैक्टरियों एवं मिल जैसे- स्लाटर हाऊस (कसाई घर), शराब की भट्टी, टेक्सटाइल, पेपर स्टील मिल्स से निकलने वाला ठोस एवं तरल कचरा आता है। थर्मल पाॅवर प्लान्ट, न्यूक्लियर प्लान्ट से निकलने वाली राख, धुँआ, गर्म पानी और रेडियोध्ार्मी पदार्थ सभी औद्योगिक कचरे के रूप हैं। पुरानी इमारतों और भवनों के ढ़हने (गिरने) से व इमारतों के निर्माण में निकली सामग्री जैसे-ईंट, पत्थर, सीमेंट, बालू आदि भी औद्योगिक कचरा हैं। धातुओं के निष्कर्षण में भी ठोस व तरल कचरा निकलता है।  

    कृषि क्षेत्र से कुछ जैविक और अजैविक अपशिष्ट जैसे-सूखी पत्तियाँ, डालियाँ, भूसी, उर्वरक व कीटनाशक निकलते हैं। यातायात के समस्त साधन गैसीय अपशिष्ट के मुख्य स्रोत हैं। वाहनों से निकलने वाला धुँआ गैसीय अपशिष्ट हैं जो वायु प्रदूषण का मुख्य कारण है।

    चिकित्सीय अपशिष्ट जो कि अस्पतालों और दवाखानों से निकलता है जैसे-पट्टी, बैण्डेड, खराब दवाएँ, उपचार में प्रयुक्त रूई, सीरिंज आदि बहुत हानिकारक होता है। अपशिष्ट के रूप में एकत्र हुआ यह कचरा अनेक तरह के संक्रमण का कारण होता है।


 
    प्राकृतिक घटनाएं जैसे-बाढ़, तूफान, भूकम्प, ज्वालामुखी, चक्रवात आदि के बाद भी अपशिष्ट के रूप में मलवा, लावा, राख आदि निकलता है जो वातावरण में एकत्रित होता है।

अपशिष्ट इकठ्ठे होते रहें तो पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक होंगे। ये मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालते हैं। अपशिष्ट संग्रह के दुष्प्रभावों के कई उदाहरण हैं, आइए जानें-
•    दिसम्बर 1984 में भोपाल की यूनियन कार्बाइड पेस्टीसाइड फैक्ट्री से मेथिल आइसो सायनाइट गैस का रिसाव हुआ। इस गैस ने शहर के लाखों लोगों को प्रभावित किया तथा हजारों पीड़ितों की मृत्यु हो गई।  अन्य लोग जीवन काल के लिए अनेक बीमारियों जैसे-कैंसर, साँस फूलना, सिर दर्द, अंगों का सुन्न होना से ग्रसित हो गए। इस घटना कोे भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। इस घटना के बाद भी फैक्ट्री से कचरे के रूप में घातक रासायन निकले जिसने आस-पास के क्षेत्रों की मिट्टी और जल को प्रभावित किया। आज भी इन अपशिष्टों का दुष्प्रभाव वहां की आने वाली पीढ़ियों में देखा जाता है।
•    फसलों को नुकसान पहुँचाने वाले कीटों को नष्ट करने के लिए कीटनाशकों जैसे-डी0डी0टी0 का प्रयोग किया जाता है। इसके इस्तेमाल से फसलों का उत्पादन उन्नत तो हुआ है लेकिन यह रसायन कीटों के साथ-साथ मानव व अन्य जन्तुओं के लिए अत्यन्त हानिकारक है। यह कीटनाशक लम्बे समय तक मिट्टी में उपस्थित रहता है और नष्ट नहीं होता है। इस कारण कई देशों ने इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है।
•     एस्बेस्टाॅस एक रेशेदार सिलिकेट रसायन होता है। एस्बेस्टाॅस चादर का प्रयोग छतों और दरवाजों के निर्माण के लिए किया जाता है। अपशिष्ट के रूप में फेंका गया यह रेशेदार पदार्थ हमारे शरीर के अन्दर पहुँच कर फेफड़ों को नुकसान पहुँचाता है। यह एस्बेस्टाॅसिस नामक बीमारी का कारण होता है जिसमें श्वसन क्रिया प्रभावित होती है।
 •    पारा एक भारी धातु है जो सामान्य तापमान पर तरल अवस्था में रहता है। यह आसानी से वाष्पीकृत हो जाता है। वातावरण में घुलने के बाद पारा लम्बे समय तक वहां बना रहता है। यह वायु, जल और भूमि के माध्यम से जीव-जन्तुओं और मनुष्यों के शरीर में पहुँच कर प्राणघातक हो जाता है। यह जीवों के तंत्रिका तंत्र, पाचन तंत्र, फेफड़ों और गुर्दों को नुकसान पहुँचाता है। सन 1950 में जापान की एक रासायनिक फैक्ट्री सिस्को ने मिनामाता खाड़ी में पारे (मरकरी) को अपशिष्ट के रूप में फेंक दिया। खाड़ी में पाए जाने वाली मछलियों को खाने से वहां के लोग तंत्रिका तंत्र से संबंधित एक रोग से ग्रसित हो गए जिसे मिनामाता रोग कहा जाता है।
अपशिष्ट का निस्तारण
    तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या, बदलती जीवनशैली तथा ‘प्रयोग करो और फेंको’ संस्कृति की आदतों के कारण अपशिष्ट दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। गाँव से लेकर नगरों तक अपशिष्ट की बढ़ती मात्रा से प्रदूषण व गंदगी जैसी समस्या हो गयी है। वर्तमान समय में गाँवों/शहरों के निकलने वाले कूडे़-कचरे का सही ढंग से निपटान न करने से समस्या बढ़ती जा रही है। खुले स्थानों में कचरे का ढे़र लगाने से आस-पास के क्षेत्र  प्रदूषित होते हैं। पर्यावरण में बढ़ता यह प्रदूषण मानव तथा अन्य जीवधारियों के लिए सबसे बढ़ा खतरा है। अतः कचरे का सही तरीके से प्रबन्धन तथा उसका निस्तारण करना स्वास्थ्य एवं स्वच्छता की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण है। कचरे के प्रबन्धन हेतु 4त् सुझाए गए हैं जिनका हमें अनुसरण करना चाहिए।


qa
•    R1.     मना कीजिए- पाॅलीथीन एवं प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का उपयोग न करें तथा दूसरों को भी इसका भी उपयोग करने से रोकें।
•    R2. उपयोग कम- विभिन्न वस्तुओं का उपयोग अपनी आवश्यकतानुसार करें, जिससे अपशिष्ट कम निकलें
•    R3.        पुनः उपयोग-कुछ कचरा ऐसा होता है जिसका पुनः उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार चीजों को फेंकने के बजाय उन्हें दोबारा इस्तेमाल करने से कचरे के निपटान में मदद हो सकती है। उदाहरण के लिए हम ऐसे कागज को जिसके एक तरफ लिखा या छपा हो, पलट कर दूसरी तरफ रफ कार्य के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। बाद में उस कागज का थैला बनाकर भी उसे उपयोग में लाया जा सकता है। इसी तरह ऐसी पेन का इस्तेमाल करें जिसमें रिफिल या स्याही डाली जा सके।
•    R4.     पुनः चक्रण-बेकार एवं अनुपयोगी सामानों का रूप बदल कर उन्हें पुनः उपयोग में लाना पुनः चक्रण कहलाता है। हम अपने घरों में खराब हुए उपकरणों, वाहनों, अखबार, प्लास्टिक आदि को कबाड़ी को पुनःचक्रण के लिए दे सकते हैं। 13
    इस तरह 4R को अपनाकर बेकार एवं अनुपयोगी वस्तुओं (अपशिष्ट) की मात्रा को कम करना एवं उनको अपनी आवश्यकता के अनुरूप पुनः उपयोगी बनाने की प्रक्रिया को निस्तारण कहते हैं।
    जैसा कि हम जानते हैं कि अपशिष्ट पदार्थ मुख्यतः ठोस, द्रव एवं गैसीय अवस्थाओं में पाए जाते हैं। अतः इनके निस्तारण की क्रिया भी भिन्न-भिन्न होती है। यह निम्न प्रकार से की जा सकती है-
ठोस अपशिष्ट पदार्थों का निस्तारण-
(क) जलाकर-अस्पतालों से निकलने वाले ठोस अपशिष्ट संक्रामक होते हैं। इसलिए इसे विशेष प्रकार की
    भट्ठियों में जलाना चाहिए। किन्तु अन्य ठोस अपशिष्ट जैसे-पाॅलीथीन, फसलों की डंठल,         
प्लास्टिक आदि को खुले स्थान में जलाना उचित नहीं है क्योंकि इससे निकलने वाला धुँआ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है और वायुमण्डल को भी प्रदूषित करता है।
(ख) भूमि भरण-ठोस अपशिष्ट के निस्तारण की यह सबसे पुरानी एवं उपयोगी विधि है। इसमें बस्ती से दूर बंजर या अनुपयोगी भूमि में अपशिष्ट को डालकर पतली तहों में फेंक दिया जाता है तथा मिट्टी से दबा दिया जाता है। आजकल इन कूड़े-कचरों का प्रयोग गड्ढों को भरने में भी किया जाता है।
    यह विधि सस्ती एवं उपयोगी है किन्तु सही ढंग से अपशिष्ट का निस्तारण नहीं करने से दुर्गन्ध फैलती है जिससे हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
evs-2
(ग) कम्पोस्टिंग-जैविक कचरा जैसे-फलों एवं सब्जियों के छिलके, जानवरों के मल-मूत्र, सूखी पत्तियाँ एवं डालियाँ आदि को गड्ढे में दबाकर मिट्टी से ढक दिया जाता है। ये अपशिष्ट दो-तीन माह में गलकर जैविक खाद में बदल जाते हैं। इस प्रक्रिया को कम्पोस्टिंग कहते हैं। इस तरह से बनी खाद का उपयोग बगीचे एवं खेतों में कर सकते हैं। कम्पोस्टिंग, जैविक कचरे का पुनः चक्रण करने का सबसे अच्छा तरीका है। इससे हमें दो फायदे होते हैं-पहला हमें जैविक खाद प्राप्त होती है तथा दूसरा कचरे का निपटान भी हो जाता है।


अजैविक ठोस कचरा जैसे-प्लास्टिक, काँच एवं धातुओं के टूटे सामान तथा खराब इलेक्ट्रिानिक उपकरणों का निपटान कबाड़ी को पुनः चक्रण के लिए दे कर किया जाता है।
op
    आपने देखा होगा सार्वजनिक स्थानों जैसे- पार्क, स्टेशन, बाजार पर्यटन स्थल आदि में दो रंग के कूड़ेदान (हरा और नीला) रखे जाते है। जैविक और अजैविक कचरे का निस्तारण अलग-अलग करने के लिए यह व्यवस्था की जाती है। हरे कूड़ेदान में जैविक कचरा (गलने वाला/गीला कचरा) तथा नीले कूड़ेदान में अजैविक कचरा (न गलने वाला/सूखा कचरा) डाला जाता है। आप भी अपने घर और विद्यालय मेें दो कूड़ेदान रखकर गलने तथा न गलने वाले कचरे का अलग-अलग निस्तारण कर उपरोक्त तरीके से पुनःचक्रित कर सकते हैं। अस्पतालों से निकलने वाला चिकित्सीय अपशिष्ट लाल रंग के कूड़ेदान में एकत्रित किया जाता है।
    द्रव अपशिष्ट पदार्थों का निस्तारण-द्रव अपशिष्ट को उपचारित करने के पश्चात ही जल स्रोतों में मिलाना चाहिए अन्यथा जल संक्रमित हो जाता है तथा पीने व अन्य कार्यों के योग्य नहीं रहता है। शहरी इलाके में सीवेज सिस्टम से गंदे पानी का निकास होता है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में खुली नालियों से पानी का निकास होता है। शहरों में सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लान्ट (एस0टी0पी0) होता है, जहाँ शहर के गंदे जल को उपचारित किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में अपशिष्ट जल के निकास स्थान पर सोकपिट बनाकर जल को उपचारित किया जाता है और उसे पुनः उपयोगी बनाया जाता है।
आओ जानें गंदे पानी के निस्तारण के लिए कैसे सोकपिट तैयार किया जाता है ?
    घर से कुछ दूर एक गहरा गड्ढा खोदें। उसकी सतह में ईंट, पत्थर के टुकड़े डाल दें। खपरैल की टूटन डालकर, बालू की परत बिछा दें। गड्ढे को ऊपर से ढँक दें। इस प्रकार आपका सोकपिट तैयार हो जायेगा। ऊपर से कभी-कभी चूना छिड़कें। नाली द्वारा पानी बहने के स्थान को सोकपिट से जोड़ें।
गैसीय अपशिष्ट का निस्तारण-
    ईंट भट्ठों/उद्योगों की चिमनियों को ऊँचा करके तथा उनमें  धूम्र अवक्षेपक लगाकर गैसीय अपशिष्ट का उचित निस्तारण किया जाता है। इसी तरह बायो गैस का उपयोग घरेलू ईंधन के रूप में करके तथा लकड़ी, कोयला आदि से भोजन पकाने के स्थान पर गैस चूल्हे (एल0पी0जी0) का प्रयोग करके भी गैसीय अपशिष्ट की मात्रा को कम किया जा सकता है।
अपशिष्ट निस्तारण हेतु सरकारी प्रयास
    सामुदायिक स्वच्छता बनाए रखने एवं अपशिष्ट पदार्थों के उचित निस्तारण के लिए विभिन्न इकाइयों द्वारा विविध प्रकार के कार्यक्रम और अभियान चलाए जा रहे हैं। हमें इनके बारे में जानकारी रखनी चाहिए तथा इन योजनाओं का भरपूर लाभ उठाना चाहिए।


  इकाई             सार्वजनिक स्वच्छता एवं अपशिष्टों के निस्तारण हेतु चलाए जा रहे कार्यक्रम
ग्राम पंचायत       जल निकास हेतु नालियों का निर्माण और उनकी नियमित सफाई।
                    सार्वजनिक कूड़ा घरों, घूर गड्ढों का निर्माण।
                    कुओं व तालाबों की नियमित सफाई तथा उनमें ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव।
                    सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण।
                    पर्यावरणीय स्वच्छता के लिए जनजागरण अभियान चलाना।
क्षेत्र पंचायत     नालों/नालियों का निर्माण एवं रख-रखाव।
                    सार्वजनिक शौचालयों, कूडा घरों का निर्माण एवं उनका रख-रखाव।
                     गोबर गैस/बायो गैस संयंत्र की स्थापना।
                    धुआँरहित चूल्हों के उपयोग को बढ़ावा देना।
                     जलाशयों की सफाई।
                      सार्वजनिक भूमि पर वृक्षारोपण।
जिला पंचायत /        गोबर गैस, बायो गैस संयंत्र की स्थापना एवं उनका रख-रखाव।
नगर पालिका     कूड़ा घरों का निर्माण, उनका रख-रखाव तथा कचरे का नियमित निस्तारण।
                      नालों, सीवर लाइन का निर्माण एवं उनकी सफाई।
                      तालाबों, जलाशयों की सफाई।
                      सार्वजनिक एवं व्यक्तिगत शौचालयों का निर्माण एवं उनका रख-रखाव।
    पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले कारकों की पहचान करते हुए उनके निवारण के बारे में समुचित उपाय करना हम सभी का दायित्व है। हम सभी का मिला-जुला प्रयास पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।