उत्तर प्रदेश के प्रमुख लोकनृत्य

 उत्तर प्रदेश के प्रमुख लोकनृत्य


 नृत्य   -    विवरण

  • जोगिनी नृत्य-  विशेषकर रामनवमी के अवसर पर। पुरुष, महिलाओं का रूप धारण कर नृत्य करते हैं।
  • धींवर नृत्य- कहार जाति द्वारा शुभ अवसरों पर।
  • शैरा नृत्य-  बुन्देलखण्ड के किसानों द्वारा फसल कटाई के समय।
  • पासी नृत्य- पासी जाति द्वारा सात अलग-अलग मुद्राओं में युद्ध की भाँति नृत्य किया जाता है।
  • धुरिया नृत्य- बुन्देलखण्ड के कुम्हार (प्रजापति) लोगों द्वारा स्त्री वेष धारण कर।
  • चरकुला नृत्य- ब्रजवासियों द्वारा किया जाने वाला घड़ा नृत्य जिसमें बैलगाड़ी अथवा रथ के पहिए पर कई घड़े रखे जाते हैं तथा फिर उसे सिर पर रखकर नृत्य किया जाता है।
  • छोलिया नृत्य- राजपूतों द्वारा विवाहोत्सव पर एक हाथ में तलवार तथा एक हाथ में ढाल लेकर।
  • छपेली नृत्य- एक हाथ में रुमाल तथा दूसरे में दर्पण लेकर किए जाने वाले इस नृत्य में आध्यात्मिक समुन्नति की कामना की जाती है।
  • नटवरी नृत्य- पूर्वांचल क्षेत्र में अहीरों द्वारा।
  • देवी नृत्य- मुख्यतः बुन्देलखण्ड क्षेत्र में प्रचलित है।
  • पाई डण्डा नृत्य- बुन्देलखण्ड के अहीरों द्वारा गुजरात के डाण्डिया नृत्य के समान किया जाता है। क्‍
  • राई नृत्य- बुन्देलखण्ड की महिलाओं द्वारा विशेषकर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर मयूर की भाँति किया जाता है अत: इसे मयूरनृत्य भी कहा जाता है।
  • दीप नृत्य- बुन्देलखण्ड के अहीरों द्वारा प्रज्वलित दीपों से भरी थाली अथवा परात सिर पर रखकर।
  • धोबिया नृत्य- यह पूर्वांचल का नृत्य है। इसे मांगलिक अवसरों पर किया जाता है।
  • मयूर नृत्य- यह नृत्य ब्रज क्षेत्र में किया जाता है तथा नर्तक मोर पंख के वस्त्र धारण करते हैं।
  • कार्तिक नृत्य- बुन्देलखण् क्षेत्र में कार्तिक माह में नर्तकों द्वारा श्रीकृष्ण तथा गोपी बनकर।
  • कलाबाजी नृत्य- अवध क्षेत्र के लोग 'मोरबाजा' लेकर कच्ची घोड़ी पर बैठकर नृत्य करते हैं। '
  • ख्याल नृत्य- पुत्र रत्न के जन्मोत्सव पर।
  • झूला नृत्य- ब्रज क्षेत्र में श्रावन मास में