बाल-विकास व मनोविज्ञान के टॉपिक 'अधिगम वक्र एवं अधिगम पठार'
अधिगम वक्र →जब हम कुछ नया सीखना प्रारम्भ करते है, तो शीघ्र ही हम प्रवीण नही होते अपितु सीखने की गति कभी तीव्र हो जाती है, कभी मन्द हो जाती है, कभी बिल्कुल रूक जाती है, यदि सीखने की इस गति को ग्राफ पेपर पर अंकित करें तो सीखने की उन्नति व अवनति या दोनों को दर्शाती हुई, एक वक्र रेखा बन जाती है। इस वक्र रेखा को ही अधिगम वक्र कहते है।
यानि कि शिक्षण या सीखने की प्रगति या अवनति को दिखाने वाली वक्ररेखा को शिक्षण वक्र कहा जाता है।
अधिगम वक्र के प्रकार —
अधिगम वक्र के चार प्रमुख प्रकार होते है :
समान निष्पादन वक्र (Curve of equal returns): इस वक्र को रेखीय त्वरण वक्र भी कहा जाता है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, इस वक्र का आकार एक सीधी रेखा के समान होता है। इस तरह के वक्र से यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि प्रत्येक प्रयास में सीखने की मात्रा या निष्पादन समान रहा है।
वर्धमान शिक्षण वक्र या धनात्मक त्वरण वक्र (Curve of increasing returns or positive acceleration curve):इस तरह का वक्र तब बनता है जब प्रारम्भ के प्रयासों में सीखने की गति धीमी होती है और फिर बाद के प्रयासों में उसकी गति तीव्र हो जाती है जिसके फलस्वरूप शिक्षण वक्र तेजी से ऊपर उठता है। इस तरह का शिक्षण वक्र वैस परिस्थिति में बनता है जब शिक्षार्थी को कोई कठिन पाठ सीखने के लिए या कठिन समस्या का समाधान करने के लिए कहा जाता है। स्वभावत: पाठ कठिन होने पर प्रारंभ में सीखने की गति धीमी होती है तथा फिर कुछ अभ्यास हो जाने के बाद उसकी गति तीव्र हो जती है।
ह्रास निष्पादन वक्र या ऋणात्मक त्वरण वक्र (Curve of decreasing returns or negative acceleration curve):इस तरह के वक्र से यह पता चलता है कि प्रारंभ के प्रयासों में सीखने की गति तीव्र होती है परन्तु बाद के प्रयासों में यह गति धीमी हो जाती है। अगर एक सीमा के बाद भी अभ्यास किया जाता है, तो वैसी परिस्थिति में प्रत्येक प्रयास के बाद निष्पादन में कोई वृद्धि नहीं होती है और कभी-कभी थकान, अनिच्छा आदि कारणों से निष्पादन में ह्रास भी होना प्रारंभ हो जाता है।
एस-आकारीय वक्र (S-shaped curve):इस तरह के शिक्षण वक्र में सीखने की गति या दर आरंभ में धीमी होती है और फिर बाद के प्रयासों में तीव्र हो जाती है और अन्त में फिर धीमी हो जाती है। अगर छात्र को एक ऐसा नया पाठ सीखने को दे दिया जाता है जिससे वह पूर्वपरिचित नहीं है तथा साथ ही साथ पूरा पाठ समान रूप से कठिन है, तो इससे बनने वाला वक्र प्राय: एस-आकारीय वक्र होता है।अधिगम का पठार →
सीखना जब स्थिर हो जाये, तो इस अवस्था को सीखने का पठार कहते है।
रॉस के अनुसार—सीखने की प्रक्रिया की एक प्रमुख विशेषता पठार है। इससे उस अवधि को व्यक्त करते है जब सीखने की क्रिया में कोई उन्नति नहीं होती है।
अधिगम पठार के कारण —
ज्ञान की सीमा
उत्साह की सीमा या प्रेरणा की सीमा
सीखने की अनुचित विधियों का प्रयोग
कार्य की जटिलता
शारीरिक क्रिया की सीमा
सीखने के पठारों का निराकरण —
(1) प्रोत्साहित एवं प्रेरित करना।
(2) रोचक और उत्तम विधियों का प्रयोग।
(3) विश्राम देना एवं उपयुक्त वातावरण की व्यवस्था।
(4) सरल से जटिल की ओर के सिद्धान्त को अपनाकर।
सोरेन्सन के अनुसार—शायद ऐसी कोई भी विधि नहीं है, जिससे पठारों को बिल्कुल समाप्त कर दिया जाएं, पर उनकी संख्या व अवधि को कम किया जा सकता है।